काकड़ आरती गीत (Kakad Aarti Lyrics)

“ककड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics)” साईं बाबा की पूजा और आरती का नाम है, जो सुबह के समय समर्पित की जाती है। यह आरती साईं बाबा के प्रति भक्ति और पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। काकाड़ आरती को प्रातःकाल में सूर्योदय के समय आदि की जाती है। इन सभी लाभों के साथ-साथ, काकाड़ आरती भक्ति, आध्यात्मिकता और आत्म-समर्पण के माध्यम से व्यक्ति के जीवन को प्रकाशित करने में मदद कर सकती है।

काकड़ आरती (Kakad Aarti Lyrics) के लाभ

  1. आत्मा के शुद्धिकरण: काकाड़ आरती के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और पवित्रता की दिशा में सहायक हो सकती है। यह आरती आत्मा को अपने मूल स्वरूप में लौटने की प्रेरणा देती है और निम्नलिखित सभी अवगुणों का संकेत कर सकती है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, और मात्सर्य।
  2. आत्म-समर्पण: इस आरती के माध्यम से भक्त अपने आपको काकाड़ देवता की सेवा और समर्पण में समर्पित करते हैं। यह उन्हें अपनी अहंकार और अल्पता से मुक्ति प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
  3. जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति: काकाड़ आरती के माध्यम से भक्त अपने जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति और मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। यह उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है और उनके जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
  4. शांति और सुख: काकाड़ आरती के द्वारा भक्त आंतरिक शांति और सुख की प्राप्ति के प्रति प्रेरित हो सकते हैं। यह उन्हें चिंताओं और स्थानिक आपत्तियों से बाहर निकलने में मदद कर सकता है।

काकड़ आरती का वीडियो

काकड़ आरती (Kakad Aarti Lyrics)

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(१) जोडूनियां कर (भूपाळी)

जोडूनियां कर चरणी ठेविला माथा ।
परिसावी विनंती माझी सद्गुरूनाथा ॥१॥

असो नसो भाव आलों तुझिया ठाया।
कृपादृष्टी पाहें मजकडे सद्गुरूराया ॥२॥

अखंडित असावें ऐसे वाटतें पायीं ।
सांडूनी संकोच ठाव थोडासा देई ॥3॥

तुका म्हणे देवा माझी वेडीवांकुडी ।
नामें भवपाश हातीं आपुल्या तोडी ॥४॥

2. उठा पांडुरंगा (भूपाळी)

उठा पांडुरंगा आता प्रभातसमयो पातला
वैष्णवांचा मेळा गरूडपारी दाटला ॥1॥

गरूडपारापासुनी महाद्वारापर्यंत ।
सुरवरांची मांदी उभी जोडूनिया हात ॥2॥

शुक सनकादिक नारद-तुंबर भक्तांच्या कोटी।
त्रिशूल डमरू घेऊनि उभा गिरिजेचा पती ॥3॥

कलीयुगीचा भक्त नामा उभा कीर्तनी ।
पाठीमागे उभी डोळा लावुनियां जनी ॥4॥

(३) उठा उठा (भूपाळी)

उठा उठा श्री साईनाथ गुरू चरणकमल दावा। .
आधिव्याधि भवताप वारुनी तारा जडजीवा ॥ध्रु. ।।

गेली तुम्हां सोडूनियां भवतमरजनी विलया ।
परि ही अज्ञानासी तुमची भुलवि योगमाया ।
शक्ति न आम्हां यत्किंचितही तिजला साराया।
तुम्हीच तीतें सारुनि दावा मुख जन ताराया ।। चा० ।।

भो साईनाथ महाराज भवतिमिरनाशक रवी।
अज्ञानी आम्ही किती तव वर्णावी थोरवी ।
ती वर्णितां भागले बहुवदनि शेष विधि कवी ।।चा०।।

सकृप होउनि महिमा तुमचा तुम्हीच वदवावा ।।
आधि० ।। उठा० ।।१।।

भक्त मनीं सद्भाव धरूनि जे तुम्हां अनुसरले ।
घ्यायास्तव ते दर्शन तुमचें द्वारिं उभे ठेले ।
ध्यानस्था तुम्हांस पाहुनी मन अमुचें धाले ।
परि त्वद्वचनामृत प्राशायातें आतुर झाले ।।चा०।।

उघडूनी नेत्रकमला दीनबंधु रमाकांता।
पाहिबा कृपादृष्टी बालका जशी माता ।
रंजवी मधुरवाणी हरी ताप साईनाथ ।।चा० ।।

आम्हीच अपुले काजास्तव तुज कष्टवितो देवा ।
सहन करीशी ऐकुनी द्यावी भेट कृष्ण धावां ।।
उठा उठा० ।। आधिव्याधि० ॥२॥

(4) दर्शन द्या (भूपाळी)

उठा पांडुरंगा आतां दर्शन द्या सकळां ।
झाला अरूणोदय सरली निद्रेची वेळा ॥१॥

संत साधू मुनी अवघे झालेती गोळा ।
सोडा शेजे सुखे आतां बघुद्या मुखकमळा ।।२।।

रंगमंडपी महाद्वारी झालीसे दाटी ।
मन उतावीळ रूप पहावया दृष्टी ||३||

राही रखुमाबाई तुम्हां येऊं द्या दया ।
शेजे हालवूनी जागे करा देवराया ।।४॥

गरूड हनुमंत उभे पाहती वाट ।
स्वर्गीचे सुरवर घेऊनि आले बोभाट ।। ५ ।।

झाले मुक्तद्वार लाभ झाला रोकडा ।
विष्णुदास नामा उभा घेऊनि कांकडा ।।६।।

(५) पंचारती (अभंग)

घेउनियां पंचारती । करूं बाबांसी आरती ।।
करूं साईसी० ॥१॥
उठा उठा हो बांधव । ओंवाळू हा रमाधव ॥
साई र० ॥ओं० ॥२॥
करूनिया स्थिर मन । पाहूं गंभीर हे ध्यान ।
साईंचे हे० ।।पा० ॥३॥
कृष्णनाथा दत्तसाई । जडो चित्त तुझे पायी ।।
साई तु०॥ जडो० ॥४॥

(६) चिन्मयरूप काकड आरती

काकड आरती करीतों साईनाथ देवा ।
चिन्मयरूप दाखवीं घेऊनि बालक-लघुसेवा ।।धु० ॥

काम क्रोध मद मत्सर आटुनी कांकडा केला।
वैराग्याचे तूप घालुनी मी तो भिजविला ।
साईनाथगुरूभक्तिज्वलनें तो मी पेटविला ।
तवृत्ती जाळूनी गुरूनें प्रकाश पाडीला ।
द्वैत-तमा नासूनी मिळवी तत्स्वरूपी जीवा । ॥ चि० ॥१॥

भू-खेचर व्यापूनी अवघे हृत्कमलीं राहसी ।
तोचि दत्तदेव शिरडी राहुनी पावसी ।
राहनी येथे अन्यत्रहित भक्तांस्तव धावसी।
निरसुनिया संकटा दासा अनुभव दाविसी ।
न कळे त्वल्लीलाही कोण्या देवा वा मानवा ।। ॥ चि० ॥२॥

त्वद्यशदुदुंभीने सारे अंबर हे कोंदलें ।
सगुण मूर्ति पाहण्या आतुर जन शिरडी आले ।
प्राशुनी त्वद्वचनामृत अमुचे देहभान हरपलें ।
सोडूनियां दुरभिमान मानस त्वच्चरणीं वाहिले ।
कृपा करूनियां साईमाउले दास पदरी घ्यावा ।। ॥ चि० ।।का० ।।चि० ।।३।।

(७) पंढरीनाथा काकड आरती

भक्तिचिया पोटीं बोधकांकडा ज्योती ।
पंचप्राण जीवेंभावे ओवाळू आरती ॥१॥ .

ओवाळू आरती माझ्या पंढरीनाथा ।
दोन्ही कर जोडोनी चरणी ठेविला माथा ॥ध्रु.॥

काय महिमा वर्ण आतां सांगणे किती ।
कोटी ब्रह्महत्या मुख पाहतां जाती ।।२।।

राई रखुमाबाई उभ्या दोघी दो बाहीं।
मयुरपिच्छ चामरें ढाळिति ठायी ठायी ॥३॥

तुका म्हणे दीप घेउनि उन्मनीत शोभा ।।
विटेवरी उभा दिसे लावण्यगाभा ।। ४ ।। ओवाळू।।

(८) पद (उठा उठा)

उठा साधुसंत साधा आपुलाले हित ।
जाईल जाईल हा नरदेह मग कैंचा भगवंत ।।१।।

उठोनियां पहाटें बाबा उभा असे विटे।
चरण तयांचे गोमटे अमृतदृष्टी अवलोका ।।२।।

उठा उठा हो वेगेंसीं चला जाऊंया राउळासी।
जळतील पातकांच्या राशीकांकड आरती देखिलिया ।।३।।

जागें करा रूक्मिणीवर, देव आहे निजसुरांत ।
वेगें लिंबलोण करा दृष्ट होईल तयासी ।। ४ ।।

दारी वाजंत्री वाजती ढोल दमामे गर्जती ।।
होते कांकड आरती माझ्या सद्गुरूरायांची ।।५।।

सिंहनाद शंखभेरी आनंद होतसे महाद्वारी ।
केशवराज विटेवरी नामा चरण वंदितो ।।६।।

साईनाथगुरू माझे आई। मजला ठाव द्यावा पायीं ।।
दत्तराज गुरू माझे आई । मजला ठाव द्यावा पायीं ।।
श्रीसच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय ।

(९) श्री साईनाथप्रभाताष्टक (पृथ्वी )

प्रभातसमयीं नभा शुभ रविप्रभा फांकली ।
स्मरे गुरू सदा अशा समयिं त्या छळे ना कली ।।
म्हणोनि कर जोडूनी करूं आता गुरूप्रार्थना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ॥१॥

तमा निरसि भानु हा गुरूहि नासि अज्ञानता ।
परंतु गुरूची करी न रविही कधी साम्यता ।
पुन्हां तिमिर जन्म घे गुरु कृपेनि अज्ञानता ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।२।।

रवि प्रगट होउनि त्वरित घालवी आलसा ।
तसा गुरूहि सोडवी सकल दृष्कृती लालसा ।।
हरोनि अभिमानही जडवि तत्पदी भावना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ॥३॥

गुरूसि उपमा दिसे विधिहरीहरांची उणी ।
कुठोनि मग येई ती कवनिं या उगी पाहुणी ।।
तुझीच उपमा तुला बरवि शोभते सज्जना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।४।।

समाधि उतरोनियां गुरू चला मशिदीकडे ।
त्वदीय वचनोक्ति ती मधुर वारिती सांकडें ।।
अजातरिपुसद्गुरु अखिलपातका भंजना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।५।।

अहा सुसमयासि या गुरू उठोनियां बैसले ।
विलोकुनि पदाश्रिता तदिय आपदे नासिलें ॥
असा सुहितकारि या जगति कोणिही अन्य ना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।६।।

असे बहुत शाहणा परि न ज्या गुरूची कृपा ।
नतत्स्वहित त्या कळे करितसे रिकाम्या गपा ।।
जरी गुरूपदा धरी सुदृढ भक्तिनें तो मना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।। ७ ।।

गुरो विनंति मी करी हृदयमंदिरीं या बसा ।
समस्त जग हें गुरूस्वरूपची ठसो मानसा ।।
घडो सतत सत्कृती मतिहि दे जगत्पावना ।
समर्थ गुरू साईनाथ पुरवी मनोवासना ।।८।।

प्रेमें या अष्टकासी पढुनि गुरूवरा प्रार्थिती जे प्रभातीं ।
त्यांचे चित्तासि देतो अखिल हरूनियां भ्रांति मी नित्य शांति ।।
ऐसें हें साईनाथ कथुनि सुचविलें जेवि या बालकासी ।
तेंवी त्या कृष्णपायी नमुनि सविनयें अर्पितों अष्टकासी॥९॥

(१०) रहम नजर (पद)

साई रहम नजर करना, बच्चों का पालन करना ॥ध्रु०॥
जाना तुमने जगत्पसारा, सबही झूठ जमाना ॥ साई० ॥१॥
मैं अंधा हूँ बंदा आपका, मुझको चरण दिखलाना । साई० ॥२॥
दास गनू कहे अब क्या बोलूं, थक गई मेरी रसना ।। साई० ॥३॥

(११) पद

रहम नजर करो, अब मोरे साईं, तुमबिन नहीं मुझे मां-बाप-भाई
रहम नजर करो॥ध्रु०॥
मैं अंधा हूं बंदा तुम्हारा । मैं ना जानूं, अल्लाइलाही ।
रहम० ॥१॥

खाली जमाना मैंने गमाया । साथी आखिरी तू और न कोई ॥ रहम० ॥२॥
अपने मशीद का झाडूगनू है । मालिक हमारे, तुम बाबा साईं ॥ रहम० ।।३।।

(१२) पद

तुज काय देऊं सावळ्या मी खाया तरी ।
मी दुबळी बटिक नाम्याची जाण श्रीहरी ।
उच्छिष्ट तुला देणे ही गोष्ट ना बरी तूं
जगन्नाथ, तुज देऊ कशी रे भाकरी ।

नको अंत मदीय पाहूं सख्या भगवंता । श्रीकांता ।
मध्यान्हरात्र उलटोनि गेली ही आतां ।आण चित्ता ।

जा होईल तुझा रे कांकडा की राउळांतरीं ।
आणतील भक्त नैवद्यहि नानापरी ।।

(१३) पद श्रीसद्गुरू

श्रीसद्गुरू बाबासाई तुजवांचुनि आश्रय नाही,
भूतलीं ॥धु०॥
मी पापी पतित धीमंदा ।
तारणे मला गुरूनाथा, झडकारी ॥१॥
तूंशांतिक्षमेचा मेरू।
तूं भवार्णवींचें तारूं, गुरूवरा ॥२॥
गुरूवरा मजसि पामरा, अतां उद्धरा, त्वरित लवलाही,
मी बुडतो भवभय डोही उद्धरा ।।
श्रीसद्गुरु० ॥३॥

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ककड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics) से सम्बंधित प्रश्न

साईं बाबा कौन हैं?

साईं बाबा एक प्रमुख आध्यात्मिक गुरु और संत थे, जिन्होंने 19वीं सदी में भारत के शिरडी गांव में अपना जीवन बिताया। उन्हें भगवान का अवतार माना जाता है और वे सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से प्राप्त होने वाले दिव्यता के प्रति जाने जाते हैं।

काकड़ आरती कब और कैसे पढ़ी जाती है?

“काकड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics)” सुबह के समय पढ़ी जाती है, विशेष रूप से सुनराइज के पहले समय में। इस आरती को साईं बाबा के मंदिरों और आराध्य आस्थानों में पढ़ा जाता है, और भक्त इसे साथ में गाते हैं और पूजा करते हैं।

काकड़ आरती के फायदे क्या होते हैं?

“काकड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics)” के पाठ से साईं बाबा के भक्तों को मानसिक और आत्मिक शांति मिलती है, और वे उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देख सकते हैं। यह आरती भक्तों के लिए साईं बाबा के दिव्य आशीर्वाद का प्रतीक भी होती है।

काकड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics) के शब्द क्या होते हैं?

“काकड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics)” के शब्द साईं बाबा के प्रति भक्ति और स्तुति के लिए लिखे जाते हैं। ये शब्द अकसर साईं बाबा के मंदिरों और आराध्य आस्थानों में उपलब्ध होते हैं और भक्त इन्हें गाकर पढ़ते हैं।

काकड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics) का महत्व क्या है?

“काकड़ आरती(Kakad Aarti Lyrics)” साईं बाबा की पूजा और भक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और उनके भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण आराधना है। यह आरती सुबह के समय उनके दिव्य दर्शन का समय होती है और उनकी कृपा का प्रतीक होती है।

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