संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat)

संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat), या संतान सप्तमी, एक हिंदू धार्मिक व्रत है जो माता संतान सिद्धि देवी (पुत्र प्राप्ति देवी) की कृपा और आशीर्वाद के लिए किया जाता है। इस व्रत का महत्व महिलाओं द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए है, जो अपने वंश को बढ़ाना चाहती है।

संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) भारतीय हिन्दू धर्म में माता संताना की कृपा और सन्तान सुख की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। यह व्रत सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार मास के सप्ताह के सातवें दिन को आता है। इस व्रत को सही तरीके से मनाने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

संतान सप्तमी व्रत विधि (Santan Saptami Vrat Vidhi)

  1. तैयारी: संतान सप्तमी के दिन उठकर स्नान करें और पवित्र वस्त्र पहनें।
  2. पूजा स्थल: एक पूजा स्थल तैयार करें, जैसे कि एक मंदिर या पूजा कमरा।
  3. पूजा सामग्री: श्रीफल (नारियल), जल, फूल, दीपक, धूप, अगरबत्ती, कुमकुम, चावल, गुड़, फल, आदि की पूजा सामग्री तैयार करें।
  4. मंत्र जप: पूजा के आरंभ में माता संताना की मूर्ति के सामने बैठें और माता की पूजा करें। माता संताना की मूर्ति के सामने स्थित आप गायत्री मंत्र, संताना सप्तमी मंत्र या मां संताना के नाम का मंत्र पढ़ सकते हैं। मंत्र का जप करते समय फूलों का अर्पण करें।
  5. व्रत कथा: संतान सप्तमी की कथा सुनें।
  6. अर्चना और प्रार्थना: पूजा के बाद माता संताना के समक्ष अपनी मनोकामनाएँ रखें और उनसे संतान सुख की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।
  7. प्रसाद: पूजा के बाद कुमकुम, चावल, गुड़, फल आदि से बना प्रसाद बनाएं और उसे माता संताना को अर्पण करें।
  8. व्रत विधान: संतान सप्तमी के दिन एक महिला अथवा परिवार की महिला सदस्य व्रत रखती हैं। व्रत का अच्छमन उसी महिला करती हैं, और व्रत का उपवास एक दिन तक रखा जाता है। उपवास के दौरान केवल फल और पानी पीने का व्रत रखा जाता है।
  9. संतान सप्तमी की पूजा समापन: व्रत की पूजा को पूरी करने के बाद व्रत की सामाप्ति के बाद धूप और दीपक का आराती करें और माता संताना को प्रसाद के साथ अर्पण करें।

यह व्रत संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है, इसलिए आपको श्रद्धा और भक्ति के साथ इसे मनाना चाहिए। इसके अलावा, आपको व्रत के दौरान शुभ कार्यों से दूर रहना चाहिए और ध्यान और धारणा के साथ माता संताना की कृपा की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।

संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat Katha)

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पौराणिक कथा में हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा भगवन कृपा करके मुझे कोई ऐसा व्रत बताएं, जिससे मनुष्यों के दुखों का निवारण हो और वे धनवान पुत्रवान हो जाये, इसके उत्तर में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर “हे धर्मराज युधिष्ठिर! आपके इस प्रश्न से मुझे अत्यधिक प्रसनन्ता हुई है, आपके इस प्रश्न का उत्तर जनकल्याणकारी होगा, फिर भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) की कहानी बताई और कहा की किस प्रकार व्रत के पालन करने से मनुष्यो को योग्य संतान की प्राप्ति होगी, संतान का कल्याण होगा और दुखों का निवारण होगा। उन्होंने आगे कहा की बहुत समय पहले सर्वज्ञाता श्री लोमेश ऋषि मथुरा पहुंचे, मेरे माता और पिता ने ऋषि का बहुत आदर सत्कार किया, उनके इस आदर सत्कार से प्रसन्न होकर ऋषि ने मेरे माता-पिता को कंश द्वारा मारे गए, उनके पुत्रों के पीड़ा से बाहर निकलने के लिए संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) रखने को कहा और यह बताया की किस प्रकार से राजा नहुष और रानी चंद्रमुखी ने इस व्रत का पालन करके उनके पुत्र नहीं मरे, आप भी इस व्रत का पालन करके पुत्रशोक की पीड़ा से बाहर आ जाओगे, इतना सुनने के बाद माता देवकी ने लोमेश ऋषि से हाथ जोड़कर आग्रह किया की ऋषिवर कृपा करके मुझे संतान सप्तमी व्रत के बारे में विस्तार से बताइए, ताकि मैं इस व्रत का पालन करके पुत्रशोक की पीड़ा से बाहर आ सकू. फिर लोमेश ऋषि ने देवकी माता को कहा की हे देवकी सुनो मैं तुम्हें संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) की कथा को सुनाने जा रहा हूँ, कृपया ध्यानपूर्वक यह कथा सुनें।”

बीते युग में, राजा नहुष ने उल्लेखनीय महिमा और समानता के साथ अयोध्या शहर पर शासन किया था। उनकी रानी, चंद्रमुखी अत्यंत सुन्दर थी। उनके क्षेत्र में विष्णुदत्त नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी रूपवती के साथ रहता था। रानी चंद्रमुखी और ब्राह्मण की पत्नी के बीच गहरा संबंध था और वे अक्सर एक-दूसरे के साथ पर्याप्त समय बिताते थे।

एक विशेष दिन पर, वे सरयू नदी के पवित्र जल में स्नान करने के लिए तीर्थयात्रा पर निकले। संयोगवश, उस दिन संतान सप्तमी थी। नदी के पानी में डुबकी लगाते समय, उन्होंने अन्य महिलाओं को माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्तियाँ बनाते हुए, उनकी पूजा करने के लिए धार्मिक अनुष्ठानों में संलग्न होते देखा। इस दृश्य से प्रसन्न होकर उन्होंने इस पूजा के महत्व के बारे में पूछताछ की। महिलाओं ने स्पष्ट करते हुए कहा, “हे रानी! हम संतान सप्तमी व्रत का पालन कर रहे हैं, जो सुख, समृद्धि और बच्चों का दिव्य वरदान देता है। भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने के बाद, हम एक पवित्र अनुष्ठान करते हैं। इस व्रत को जीवनभर बनाए रखने की प्रतिबद्धता, जिसका प्रतीक भगवान शिव को धागा बांधना है।” इस प्रकार, से उन महिलाओं ने व्रत की विधि बताई।

उन महिलाओं से व्रत के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद, उन दोनों ने भगवान शिव को एक धागा बांधा और जीवन भर इस व्रत को बनाए रखने का वचन दिया। हालाँकि, ब्राह्मण की पत्नी रूपवती ने व्रत का पालन किया एवं दुर्भाग्य से, रानी चंद्रमुखी अपनी प्रतिज्ञा के बारे में भूल गयी। कुछ वर्षो बाद जब उन दोनों का निधन हो गया, तो उनका पुनर्जन्म पशु योनि में हुआ, इस जन्म में दोनों ने अनेक कठनाईया सही, इस जन्म में रानी को पूर्वजन्म की भांति ही संतान सप्तमी व्रत के बारे में कुछ याद नहीं था किन्तु ब्राह्मण की पत्नी रूपवती को संतान सप्तमी व्रत के बारे में पता था वह पशु योनि में संतान सप्तमी व्रत का पालन करने लगी, कुछ वर्षो बाद इन दोनों की मृत्यु हो जाती है, दोनों कई बार जन्म लेती है, अंततः उन्हें पुनः मानव योनि प्राप्त होती है, जिसमे रानी चंद्रमुखी राजा के घर ही कन्या के रूप में पैदा होती है और ब्राह्मण की पत्नी रूपवती भी एक ब्राम्हण के घर कन्या के रूप में पैदा होती है. जब दोनों बड़ी होती होती है तो उनको विवाह हो जाता है.

पूर्व जन्म की तरह इस जन्म में भी रानी को संतान सप्तमी व्रत के बारे में कुछ याद नहीं था, जिस कारण से रानी को कोई संतान की प्राप्ति नहीं थी, कुछ वर्षो बाद रानी ने एक गूंगे, बहरे, अबोध बालक को जन्म दिया जो कुछ वर्ष तक ही जीवित था, इन सब का कारण रानी को संतान सप्तमी व्रत के बारे में कुछ याद नहीं होना था, उधर ब्राह्मण की पत्नी रूपवती को संतान सप्तमी व्रत के बारे में पता था, उसने नियमित व्रत का पालन करके आठ पुत्रो को जन्म दिया सभी के सभी योग्य, बुद्धिमान और बलवान थे, चूँकि इस जन्म भी दोनों एक-दूसरे से परिचित थी, तो ब्राम्हण की पत्नी रूपवती ने अपने पुत्रो के साथ रानी से मिलने की सोची, ताकि उनके पुत्रो को कुछ दिनों के रानी के पास छोड़ दे, ताकि रानी का मन बहल जाये, ऐसा सोचकर वह रानी की पास जाती है, रानी अपने अत्यधिक दुःख और ईर्ष्या के कारण, रानी ने ब्राम्हण की पत्नी के प्रति बुरे इरादे रखे और उसके पुत्रों को हानि पहुँचाने की इच्छा से, रानी ने उन्हें भोजन पर जहर मिला दिया, सभी ब्राम्हण पुत्र ने जहर मिला हुआ भोजन कर लिया किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि ब्राम्हण की पत्नी के व्रत के प्रभाव से जहर का असर ख़त्म हो गया। यह देखकर रानी अत्यधिक क्रोध और ईर्ष्या से भर उठी। क्रोध में आकर उसने अपने सेवकों को ब्राम्हण के पुत्रों को यमुना नदी के गहरे पानी में फेंकने का आदेश दिया।

परन्तु इस बार भी संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) के प्रभाव से उन बालकों रानी के सेवक कुछ नहीं कर पाए, रानी ने उन बालकों को बार-बार मारने के प्रयासों के बावजूद, उन बालको का कुछ नहीं कर पायी। अब रानी का धैर्य जवाब दे गया, और उसने अपने जल्लादों को उन बालको को मारने के आदेश को पूरा करने का निर्देश दिया। नौकर उन्हें जल्लादों के पास ले गए, लेकिन एक बार फिर, भगवान शिव और माता पार्वती ने हस्तक्षेप किया, और अपनी दयालु कृपा से रूपवती के पुत्रों की रक्षा की।

घटनाओं के इस चमत्कारी मोड़ के बारे में जानने पर, रानी ने विचार करना शुरू कर दिया कि क्या यह एक दैवीय हस्तक्षेप था या नहीं। उसने विनम्रतापूर्वक अपनी गंभीर गलती के लिए रूपवती से माफी मांगी और रूपवती के बेटों को नुकसान पहुंचाने के अपने असफल प्रयासों का खुलासा किया। रानी ने गंभीरता से रूपवती से स्पष्टीकरण मांगा, जिसने तब उसे अपने पिछले जीवन के व्रत की याद दिलाई।

रूपवती ने बताया कि कैसे, अपने पहले अवतार में, वे दोस्त थे और उन्होंने संतान सप्तमी व्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा की थी। अफसोस की बात है कि रानी आप इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में असफल रहीं। हालाँकि, इस वर्तमान जीवन में, रूपवती ने ईमानदारी से संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) का पालन किया था, और उसने अपने पुत्रों को दिए गए सभी आशीर्वाद और सुरक्षा का श्रेय भगवान शिव और माता पार्वती को दिया, साथ ही उस व्रत के प्रभाव को भी बताया।

रूपवती की कहानी सुनकर, रानी चंद्रमुखी को भी व्रत के महत्व की याद आई और उन्होंने सभी निर्धारित अनुष्ठानों के साथ मुक्ताभरण व्रत का पालन करने का फैसला किया। चमत्कारिक रूप से इस व्रत के फलस्वरूप रानी को एक स्वस्थ और सुंदर पुत्र का आशीर्वाद मिला। उस समय से, महिलाएं संतान पैदा करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आशीर्वाद पाने के लिए संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) मनाती हैं।

संतान सप्तमी व्रत वीडियो (Santan Saptami Vrat Video)

संतान सप्तमी व्रत पीडीएफ (Santan Saptami Vrat Pdf)

संतान सप्तमी व्रत के बारे में (About Santan Saptami Vrat)

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संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) को शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, अर्थ हिंदू पंचांग के अनुसार शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माता संतान सिद्धि देवी की उपासना और आराधना की जाती है। इस व्रत में, महिलाएँ उपवास करती हैं और माता संतान सिद्धि देवी की मूर्ति या चित्र के सामने पूजा अर्चना करती हैं।

व्रत की शुरुआत सुबह उठकर होती है, और महिलाएं पवित्र हो कर नित्य नियम अनुसर पूजा अर्चना करती हैं। व्रत का पालन सुरक्षित वस्त्र पहचान और पवित्र जगह पर किया जाता है। व्रत के दौरान, महिलाएँ विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करती हैं और माता संतान सिद्धि देवी की कथा सुनती हैं। इस व्रत के दौरान, विशेष प्रकार के आहार पर नियम रूप से व्रत रखा जाता है, और व्रत का पालन सहायक होता है।

इस व्रत के पालन से महिला पुत्र प्राप्ति की आशीर्वाद की प्रार्थना करती हैं। इस दिन को संतान सप्तमी के रूप में मन कर महिलाएँ अपने वंश को और पुत्र प्राप्ति के लिए ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करती हैं।

यह व्रत कुछ क्षेत्रों में प्राचीन परंपरा के अनुरूप माना जाता है, और कुछ संप्रदायों में इसका महत्व है। यदि किसी महिला को पुत्र प्राप्ति की इच्छा है और उसका विश्वास है कि इस व्रत का पालन उसके लिए सहायक हो सकता है, तो वह संतान सप्तमी व्रत का पालन कर सकती है।


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संतान सप्तमी व्रत के बारे में कुछ प्रश्नों के उत्तर (Santan Saptami Vrat FAQ)

संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) क्या है?

संतान सप्तमी व्रत एक हिन्दू धार्मिक व्रत है जो माता संताना की कृपा और संतान सुख की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। यह व्रत सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार मास के सप्ताह के सातवें दिन को आता है।

इस व्रत का महत्व (Santan Saptami Vrat) क्या है?

इस व्रत का मुख्य महत्व माता संताना की कृपा और संतान सुख की प्राप्ति के लिए होता है। जो लोग संतान की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वे इस व्रत को मान्य करते हैं।

संतान सप्तमी कब मनाई जाती है?

संतान सप्तमी व्रत सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार मास के सप्ताह के सातवें दिन को आता है।

इस व्रत की विधि क्या होती है?

संतान सप्तमी व्रत की विधि में निम्नलिखित चरण होते हैं:
स्नान करना और पवित्र वस्त्र पहनना
पूजा स्थल तैयार करना और पूजा सामग्री तैयार करना
मंत्र जप करना और माता संताना की पूजा करना
संतान सप्तमी की कथा सुनना
अर्चना और प्रार्थना करना
प्रसाद तैयार करना और माता संताना को अर्पण करना

व्रत के दौरान क्या खाने-पीने की अनुमति होती है?

व्रत के दौरान व्रती केवल फल और पानी पी सकते हैं। व्रती को अन्य आहार नहीं खाना चाहिए।

कौन इस व्रत को मनाता है?

संतान सप्तमी व्रत को आमतौर पर माता संताना की कृपा की प्राप्ति के लिए मनाती हैं, जो लोग संतान की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वे इस व्रत को मनाते हैं।

क्या व्रत के बाद कुछ विशेष उपाय करने की आवश्यकता होती है?

व्रत के बाद, व्रती को अच्छमन करने के बाद माता संताना की कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करना चाहिए। व्रत की भक्ति और श्रद्धा से किया गया होता है, इसलिए यह भी महत्वपूर्ण है कि व्रती अपने मन में पूरी भक्ति और आस्था से इसे मनाएं।

क्या संतान सप्तमी व्रत का उद्देश्य ही संतान सुख होता है?

जी हां, संतान सप्तमी व्रत का प्रमुख उद्देश्य संतान सुख की प्राप्ति होता है। इस व्रत का मनाने से व्रती आशीर्वाद प्राप्त करते हैं जो संतान सुख की प्राप्ति में मदद करते हैं।

संतान सप्तमी व्रत का पालन किन-किन लोगों को करना चाहिए?

संतान सप्तमी व्रत का पालन वो लोग कर सकते हैं जो संतान की प्राप्ति के लिए इच्छुक हैं और इस व्रत का महत्व मानते हैं।

यह संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर हैं। यदि आपके पास इस व्रत से संबंधित कोई अन्य प्रश्न हैं, तो कृपया पूजा पंडित या धार्मिक गुरु से सलाह लें।

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Updated on May 11, 2024

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