वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha) – Story of Love and Intelligence

Vat Savitri Vrat Katha, जिसे “वट सावित्री व्रत” या “सावित्री (Savitri) व्रत” के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख हिन्दू व्रत है जो भारत में महिलाएं बड़े धार्मिक उत्साह के साथ मनाती हैं। यह व्रत विशेष रूप से पुष्य नक्षत्र के दिन मनाया जाता है, जो मई-जून के माह में आता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पतिव्रता स्त्री के लिए पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की प्राप्ति है।

विषय सूची

वट सावित्री व्रत का आयोजन (Vat Savitri Vrat Katha Ayojan):

  1. तैयारी (प्रियकर्मणी): व्रत की तैयारी एक दिन पहले शुरू होती है। स्त्री अपने पति की दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना करती है और व्रत के लिए सभी आवश्यक सामग्री तैयार करती हैं।
  2. उपवास (निर्जला उपवास): व्रत के दिन, स्त्री निर्जला उपवास करती है, जिसमें वो बिना पानी पिए रहती हैं। यह उपवास पूष्य नक्षत्र के साथ ब्रह्मा मुहूर्त के साथ आरंभ होता है और सूर्यास्त के बाद खत्म होता है।
  3. पूजा और व्रत कथा: स्त्री विशेष रूप से वट (बरगद) वृक्ष को पूजती है और सावित्री व्रत कथा की कथा पढ़ती है।
  4. पति पूजा: सावित्री व्रत के दिन, स्त्री अपने पति की पूजा करती है और उनके लिए दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करती है।
  5. सावित्री मंत्र: स्त्री व्रत के दौरान, विशेष रूप से सावित्री मंत्र का जाप किया जाता है।
  6. दान और पुण्य कार्य: सावित्री व्रत के दिन, दान और पुण्य कार्यों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें गरीबों को भोजन और धन देना शामिल हो सकता है।
  7. संकल्प: व्रत के दिन, स्त्री अपने संकल्प का पालन करती है और पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करती है।

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat Katha) को धार्मिक भावनाओं और विशेष आचरणों के साथ मनाने का महत्व माना जाता है और यह स्त्री के पति की लम्बी आयु और खुशी की प्राप्ति की कामना के साथ जुड़ा होता है।

वट सावित्री व्रत कथा  (Vat Savitri Vrat Katha):

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एक समय की बात है, भद्र देश में अश्वपति नाम का एक बुद्धिमान और ज्ञानी राजा राज करता था। अपने दुःख को कम करने के लिए, उन्होंने और उनकी पत्नी ने कठोर व्रत रखा और सावित्री देवी की पूजा की और उनसे बेटी पैदा होने का आशीर्वाद मांगा। उनकी भक्ति का फल मिला और उन्हें सावित्री नाम की एक बेटी का आशीर्वाद मिला, जो सभी गुणों से सुशोभित थी।

समय बीतता गया, धीरे – धीरे उनकी बेटी सावित्री बड़ी होती गयी, सावित्री बहुत सुन्दर थी, सावित्री जब विवाह के लिए उपयुक्त उम्र में पहुंची, तो उसके पिता, राजा अश्वपति को अपनी बेटी सावित्री के लिए कोई योग्य वॉर नहीं मिल रहा था, जिस जिस कारन से उन्होंने सावित्री को अपना वर चुनने की स्वतंत्रता दे दी। इसके बाद सावित्री स्वयं अपने लिए वर ढूंढ़ने अपने राज्य से बाहर चली गयी. कुछ समय बाद सावित्री अपने चुने हुए वर के साथ वापस राजमहल लौट आयी.

एक दिन, ऋषि महर्षि नारद राजा अश्वपति के महल में आए और नारद के प्रति अत्यंत भक्तिभाव के साथ सावित्री अपने चुने हुए वर के साथ महर्षि नारद के पास आयी. नारद के पूछने पर, सावित्री ने बताया, “मैंने सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना है, जो राजा घुमत्सेन का आज्ञाकारी पुत्र है। उसका राज्य छीन लिए जाने के बावजूद, वह अब अपनी पत्नी के साथ जंगल में एक अंधे पथिक के रूप में रहता है।” नारद ने सत्यवान और सावित्री की ग्रहों की स्थिति की सावधानीपूर्वक जांच करने और उनके अतीत, वर्तमान और भविष्य पर विचार करने के बाद, राजा को बताया, “राजा, आपकी बेटी ने वास्तव में एक अद्भुत वर चुना है। सत्यवान गुणी और धर्मनिष्ठ है, जो सावित्री (Savitri) के लिए उपयुक्त है।” हर मामले में।”हालाँकि, उन्होंने आगाह किया कि सत्यवान में एक महत्वपूर्ण दोष था – एक छोटा जीवनकाल, जो एक वर्ष के भीतर समाप्त होने वाला था, ठीक उसी समय जब सावित्री बारह वर्ष की हो जाएगी।

नारद की यह भविष्यवाणी सुनकर राजा को बहुत चिंता होने लगी, उन्होंने अपनी पुत्री सावित्री को बुलाकर कहा की हे पुत्री तुम सत्यवान के अतिरिक्त कोई अन्य योग्य वर ढूंढ लो, जिसके उत्तर में सावित्री ने कहा की “पिताजी! हमारी परंपरा आर्य परंपरा है, और आप तो जानते ही है की इस कुल के लड़कियां जीवन में केवल एक बार ही अपना जीवन साथी चुनती हैं। मैंने जो अपना पति चुना है वो पुरे दिल से चुना है, और मैंने इन्हे स्वीकार कर लिया है कि अब चाहे जो भी हो मुझे इन्ही के साथ रहना है, मैं इनके अतिरिक्त किसी दूसरे के बारे में सोच भी नहीं सकती।

सावित्री (Savitri) ने आगे कहा, “पिताजी, जिस प्रकार राजा सोच समझकर केवल एक बार अपना आदेश देता है, पंडित भी केवल एक बार अनुष्ठान करता हैं, और कन्यादान (शादी में बेटी को देना) का कार्य केवल एक बार किया जाता है। चाहे जो भी हो आगे क्या होगा, सत्यवान ही मेरा पति रहेगा।”

सावित्री के दृढ़ वचन सुनकर राजा अश्वपति ने सत्यवान के साथ उसके विवाह की सहमति दे दी। जैसा कि नारद जी ने बताया था, सावित्री को अपने पति की मृत्यु के समय की जानकारी थी। उन्होंने जंगल में अपने पति और सास-ससुर की सेवा करते हुए अपना जीवन शुरू किया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, सावित्री बारह वर्ष की हो गई और नारद जी की बातें उसके मन पर भारी पड़ती रहीं। जब उसके पति के अनुमानित अंत में केवल तीन दिन शेष रह गए, तो उसने उपवास शुरू किया और नारद जी द्वारा बताई गई नियत तिथि पर अपने पूर्वजों के सम्मान में अनुष्ठान किया।

एक दिन जब सत्यवान लकड़ी इकट्ठा करने के लिए जंगल में गया। अपने सास-ससुर से अनुमति मांगकर सावित्री भी उनके साथ चली गई। जंगल में सत्यवान ने सावित्री के लिए मीठे फल इकट्ठे किये और फिर लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये। हालाँकि, जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ा, उसके सिर में असहनीय दर्द हुआ और उसे नीचे उतरना पड़ा। सावित्री ने सावधानी से उसका सिर अपनी गोद में रखकर उसे पास के एक बरगद के पेड़ के नीचे लिटा दिया। चिंता से कांपते हुए उसने दक्षिण दिशा से यमराज को आते देखा।

जब यमराज और उनके दूत सत्यवान के प्राण लेने आये तो सावित्री (Savitri) ने उनका लगातार पीछा किया। यमराज ने सावित्री को समझाने का प्रयास किया और उसे वापस जाने के लिए कहा, लेकिन उसने जवाब दिया, “हे यमराज! एक पत्नी का कर्तव्य अपने पति की रक्षा करना उसका पहला धर्म है। मेरे पतिव्रत की शक्ति से कोई भी मुझे उनके पीछे जाने से रोक नहीं सकते है, इसका विरोध करना आपके लिए उचित नहीं है।”

सावित्री के धर्मयुक्त वचनों से प्रभावित होकर यमराज ने उसके पति के प्राणों के अलावा कोई भी अन्य वर मांगने कहा, जिसके उत्तर में सावित्री ने अपने सास – ससुर की आंखों की रोशनी वापस दिलाने की के साथ, उनकी लंबी उम्र की मांग की. यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसकी इच्छा पूरी की। फिर भी, सावित्री पीछे नहीं हटी और यमराज के साथ चलती रही। एक बार फिर, यमराज ने उसे वापस लौटने के लिए कहा, लेकिन सावित्री ने कहा, “हे धर्मराज! मुझे अपने पति का अनुसरण करने में कोई आपत्ति नहीं है। एक महिला के जीवन का उसके पति के बिना कोई अर्थ नहीं है। एक पति और पत्नी अलग-अलग रास्ते पर कैसे चल सकते हैं? यह मेरा कर्तव्य है की मैं मेरे पति का अनुसरण करू।”

सावित्री की अपने पति के प्रति अटूट भक्ति से प्रभावित होकर यमराज ने उससे एक बार फिर उसे अपने पति से संबंधित वरदान मांगने को कहा। उत्तर में सावित्री ने यमराज से अपने ससुराल वालों का खोया हुआ राज्य वापस दिलाने और सौ भाई होने का वरदान मांगा। एक बार फिर, यमराज ने “तथास्तु” कहकर उसकी इच्छाएँ पूरी कर दीं। फिर भी, सावित्री यमराज का पीछा करने में लगी रही। यमराज उसे वापस जाने के लिए कहता रहा।

हालाँकि, सावित्री अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रही। तब यमराज ने कहा, “हे देवी! यदि आपके मन में अब भी कोई इच्छा हो तो कृपया कह दें। आप जो भी मांगेंगी, मैं प्रदान करूंगा।” जवाब में सावित्री ने कहा, ‘यदि आप सचमुच मुझ पर प्रसन्न हैं और सच्चे मन से यह वरदान देते हैं तो मुझे सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान दीजिए।’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसकी यह इच्छा भी पूरी कर दी। पीछे मुड़कर उन्होंने सावित्री से प्रश्न किया, “तुम मेरा पीछा क्यों करती रहती हो? मैंने तुम्हें वांछित वरदान दे दिया है।”

सावित्री ने उत्तर दिया, “धर्मराज! आपने मुझे सौ पुत्रों की माँ बनने का आशीर्वाद दिया है, तो क्या मैं बिना पति के बच्चे को जन्म दे सकती हूँ? मुझे अपना पति वापस पाना होगा; तभी मैं आपका वरदान पूरा कर सकती हूँ।” सावित्री की अटूट भक्ति, धर्मपरायणता और ज्ञान से प्रभावित होकर यमराज ने सत्यवान की आत्मा को मुक्त कर दिया।

यमराज के वरदान से, सावित्री का रास्ता उसे वापस उसी बरगद के पेड़ तक ले गया जहाँ सत्यवान का निर्जीव शरीर पड़ा था। उसे प्रणाम करने और पेड़ की परिक्रमा पूरी करने पर, सत्यवान चमत्कारिक रूप से जीवित हो गया। खुशी-खुशी वे एक साथ घर लौटे। सावित्री, अब अपने पति और अपने ससुराल वालों के आँखों की रोशनी के साथ, फिर से मिल गई थी, और राजा घुमत्सेन ने अपना सिंहासन पुनः प्राप्त कर लिया था। इसके अलावा, यमराज के आशीर्वाद से राजा अश्वसेन सौ पुत्रों के पिता बने और सावित्री सौ भाइयों की बहन बनीं।

सावित्री ने दृढ़तापूर्वक अपने पतिव्रत का पालन करके अपने पति के परिवार और अपने पूर्वजों दोनों को समृद्धि प्रदान की। सत्यवान और सावित्री लंबे समय तक राजसी सुख का आनंद लेते रहे और वैवाहिक निष्ठा के सिद्धांतों के प्रति सावित्री की अटूट प्रतिबद्धता की कहानी दूर-दूर तक गूंजती रही।

वट सावित्री व्रत कथा पीडीएफ (Vat Savitri Vrat Katha Pdf):

वट सावित्री व्रत आरती  (Vat Savitri Vrat Katha Aarti):

आरती वट सावित्री (Vat Savitri Vrat Katha) और वट वट वृक्ष की।
अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी सत्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।। मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।1।।

दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।धृ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।2।।

स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।3।।

जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती। चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती।
आरती वडराजा ।।4।।

पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।5।।

पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।। स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।। अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।।

Vat Savitri Vart Katha Photo
Vat Savitri Vart Katha Photo

वट सावित्री व्रत आरती पीडीएफ (Vat Savitri Vrat Katha Aarti):

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वट सावित्री व्रत के लाभ (Benefit of Vat Savitri Vrat Katha)

वट सावित्री (Vat Savitri Vrat Katha) व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने पति के लिए दीर्घायु, सुखमय, और समृद्धि की कामना करती हैं और यह व्रत उन्हें उनके वंश की दीर्घायुता और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद दिलाने का अवसर प्रदान करता है:

  1. पति की दीर्घायु: वट सावित्री व्रत के माध्यम से, पतिव्रता स्त्री अपने पति के लिए उनकी दीर्घायुता की प्राप्ति की कामना करती है। यह उनके पति के लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने का एक माध्यम हो सकता है।
  2. परिवार की खुशियाँ: इस व्रत का पालन करने से परिवार के सभी सदस्यों को आशीर्वाद मिल सकता है। स्त्री की यह भावना और प्रयास परिवार की सुख-समृद्धि की ओर एक प्रकार की प्रेरणा प्रदान कर सकती है।
  3. धार्मिक सांस्कृतिक महत्व: वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है और धार्मिक अद्यतना और सामाजिक साजगरी की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  4. सामाजिक समृद्धि: इस व्रत के अचरण से व्यक्ति के आस-पास के समाज में एकता, समरसता, और समृद्धि की भावना पैदा हो सकती है, जो समृद्धि की दिशा में एक सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
  5. सामाजिक सहयोग: इस व्रत के माध्यम से समाज में एक-दूसरे का साथ देने और धार्मिक आचरण को प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे समृद्धि के साथ धार्मिकता की भावना भी बढ़ सकती है।

इस तरह, वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat Katha) अधिकांश महिलाओं के लिए धार्मिक और सामाजिक महत्व रखता है, जो अपने पति और परिवार के भलाई और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।


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वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat Katha) के बारे में प्रमुख प्रश्न और उनके उत्तर :

वट सावित्री व्रत क्या है?

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat Katha) एक हिन्दू व्रत है जो स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना करती हैं। इसे पुष्य नक्षत्र के दिन, माई-जून के महीनों में मनाया जाता है।

वट सावित्री व्रत की कथा क्या है?

Vat Savitri Vrat Katha में एक पतिव्रता स्त्री सावित्री के पति की आयु बढ़ाने के लिए धर्मराज यमराज से यमदूतों के साथ उसकी आत्मा को वापस लेने के लिए प्रयास करती है।

वट सावित्री व्रत कब मनाया जाता है?

यह व्रत पुष्य नक्षत्र के दिन, ब्रह्मा मुहूर्त के साथ, माई-जून के महीनों में मनाया जाता है।

वट सावित्री व्रत कैसे मनाया जाता है?

स्त्री इस व्रत में उपवास करती है, निर्जला उपवास (बिना पानी पीने का उपवास) करती है। व्रत के दिन, वट वृक्ष को पूजा जाता है, Vat Savitri Vrat Katha सुनी जाती है, और पति की पूजा की जाती है।

वट सावित्री व्रत के नियम और आचरण क्या हैं?

इस व्रत में निर्जला उपवास किया जाता है, सावित्री मंत्र का जाप किया जाता है, वट वृक्ष की पूजा की जाती है, और पति की पूजा की जाती है। धार्मिक दान और पुण्य कार्य भी किए जा सकते हैं।

वट सावित्री व्रत के फायदे क्या हैं?

इस व्रत के माध्यम से, स्त्री अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करती है। यह उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को समृद्धि, खुशी, और धार्मिकता की ओर एक कदम आगे बढ़ा सकता है।

वट सावित्री व्रत का महत्व क्या है?

वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है और धार्मिक अद्यतना और सामाजिक साजगरी की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

क्या वट सावित्री व्रत कोई विशेष प्रास्थानिक आचरण शामिल करता है?

यह व्रत (Vat Savitri Vrat Katha) अधिकांश लोगों के घरों में अपनी परंपरागत रूप से मनाया जाता है, लेकिन कुछ लोग मंदिरों या धार्मिक स्थलों में भी इसे अचरण करते हैं।

वट सावित्री व्रत की तिथि कैसे निर्धारित की जाती है?

वट सावित्री व्रत की तिथि पुष्य नक्षत्र के दिन होती है, जो माई-जून के महीनों में आता है। व्रत का आयोजन ब्रह्मा मुहूर्त के साथ किया जाता है।

क्या वट सावित्री व्रत कोई नियम तोड़ने की प्राधिकृत व्रत है?

वट सावित्री व्रत धार्मिक और सामाजिक महत्व रखता है, इसलिए इसे सख्ती से माना जाता है और नियमों का पालन करना सुनिश्चित किया जाता है।

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इस पोस्ट में लिखी गयी सारी जानकारियां धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं पर आधारित है, कृपया इसे विशेषग्य की सलाह न समझे एवं poojaaarti.com किसी भी जानकारी की पुष्टि नहीं करता है और किसी भी आरती, भजन या कथा को करवाने की विधियों के लिए अपने नजदीकी विशेषग्य की राय ले। 

Updated on May 11, 2024

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