निर्वाण षट्कम मंत्र (Nirvana Shatakam Mantra)

निर्वाण षट्कम मंत्र (Nirvana Shatakam Mantra) एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसे आत्म शतकम् भी कहा जाता है इसकी रचना आदिगुरु श्री शंकराचार्य जी द्वारा किया गया है। इस मंत्र का जाप किसी भी समय किया जा सकता है, यह व्यक्ति के मन की शांति, बुरी शक्तियों और नकारात्मक भावनाओं का नाश करता है।

निर्वाण षट्कम मंत्र क्या है (What is Nirvana Shatkam Mantra)

इस मंत्र की रचना तब की गयी जब श्री गोविंदपाद ने श्री आदि शंकराचार्य से पूछा था की – आप कौन हैं? तब श्री आदि शंकराचार्य ने इसकी रचना की थी।

यह एक षट्कम् है – एक मंत्र है, जिसमें 6 श्लोक हैं और षट् का अर्थ है छह।

यह अद्वैतवादी/गैर-द्वैतवादी दर्शन को दर्शाता है।

यह सच्चे आत्म या आत्मा की प्रकृति का गुणगान करती है। यह एक गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक मंत्र है।

इस मंत्र का उपयोग अक्सर आत्म-शांति, ध्यान और आध्यात्मिक विकास के लिए किया जाता है। यह व्यक्तियों को अपने भीतर से जुड़ने, अहंकार से ऊपर उठने और अपने वास्तविक स्वरूप को महसूस करने में मदद कर सकता है।

व्यक्ति इस मंत्र के नियमित जाप से अनेक लाभ प्राप्त कर सकता है।

निर्वाण षट्कम मंत्र संस्कृत में (Nirvana Shatakam Mantra In Sanskrit)

Advertisement

मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं
न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे ।
न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ १॥

न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:
न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष: ।
न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ २ ॥

न मे द्वेष-रागौ न मे लोभ-मोहौ
मदे नैव मे नैव मात्सर्य-भाव: ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्ष:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ३ ॥

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञा: ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ४ ॥

न मे मृत्यु न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्मो ।
न बन्धुर्न मित्र: गुरुर्नैव शिष्य:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ५॥

अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुत्त्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणां ।
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानंद रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ ६॥

निर्वाण षट्कम मंत्र का अर्थ (Meaning Of Nirvana Shatakam Mantra)

मैं मन, बुद्धि, अहंकार या स्मृति नहीं हूँ,
मैं कान, त्वचा, नाक या आंख नहीं हूं,
मैं अंतरिक्ष नहीं हूँ, पृथ्वी नहीं हूँ, अग्नि नहीं हूँ, जल नहीं हूँ, वायु नहीं हूँ,
मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ,
मैं शाश्वत शिव हूँ II1II
………………….
मैं न तो श्वास हूँ, न ही पाँच तत्व,
मैं पदार्थ नहीं हूँ, न ही चेतना के पाँच कोष
न मैं वाणी हूँ, न हाथ, न पैर,
मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ,
मैं शाश्वत शिव हूँ II2II
………………….
मुझमें न कोई पसंद है न नापसंद, न कोई लालच है न कोई भ्रम,
मैं न तो गर्व जानता हूँ, न ईर्ष्या,
मेरा कोई कर्तव्य नहीं है, न धन, वासना या मोक्ष की कोई इच्छा है,
मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ,
मैं शाश्वत शिव हूँ II3II
………………….
ना पुण्य ना पाप, ना सुख ना दुःख,
मुझे किसी मंत्र, तीर्थ, शास्त्र या अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं है,
मैं अनुभव नहीं हूँ, न ही अनुभव स्वयं है,
मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ,
मैं शाश्वत शिव हूँ II4II
………………….
मुझे न मृत्यु का भय है, न जाति या धर्म का,
मेरा कोई पिता नहीं है, कोई माता नहीं है, क्योंकि मैं कभी पैदा ही नहीं हुआ,
मैं न कोई रिश्तेदार हूँ, न कोई मित्र, न कोई शिक्षक, न कोई छात्र,
मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ,
मैं शाश्वत शिव हूँ II5II
………………….
मैं द्वैत रहित हूँ, मेरा स्वरूप निराकार है,
मैं सर्वत्र विद्यमान हूँ, सभी इन्द्रियों में व्याप्त हूँ,
मैं न तो आसक्त हूँ, न स्वतंत्र हूँ, न ही बंदी हूँ,
मैं चेतना और आनंद का स्वरूप हूँ,
मैं शाश्वत शिव हूँ II6II
………………….

निर्वाण षट्कम मंत्र (Nirvana Shatakam Mantra) Pdf


यह भी देखे

Advertisement

निर्वाण षट्कम मंत्र वीडियो (Nirvana Shatakam Mantra Video)

आज का हमारा लेख पढ़ने के लिए हम आपकी सराहना करते हैं। कृपया अपने अनुभव हमसे साझा करने के लिए हमारे facebook group पर जुड़े और हमारे facebook page को like करे। अगर आप इस लेख में कुछ सुधार चाहते है, तो कृपया comment के माध्यम से हमसे संपर्क कर सकते है।

disclaimer

इस पोस्ट में लिखी गयी सारी जानकारियां धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं पर आधारित है, कृपया इसे विशेषग्य की सलाह न समझे एवं poojaaarti.com किसी भी जानकारी की पुष्टि नहीं करता है और किसी भी आरती, भजन या कथा को करवाने की विधियों के लिए अपने नजदीकी विशेषग्य की राय ले। 

Updated on May 25, 2024

Leave a Comment