श्री शिवाष्टक – आदि अनादि अनंत अखण्ड (Shivashtak Adi Anadi Anant Akhand)

श्री शिवाष्टक – आदि अनादि अनंत अखण्ड (Shivashtak Adi Anadi Anant Akhand) भगवान भोलेनाथ को समर्पित शक्तिशाली मंत्र है, जिसके नियमित प्रतिदिन पाठ से भक्त को कष्टों से मुक्ति, रोग का नाश, मनोकामनाएं पूर्ण और भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है।

श्री शिवाष्टक – आदि अनादि अनंत अखण्ड करने की विधि (Shivashtak Adi Anadi Anant Akhand Vidhi)

  1. समय:
    श्री शिवाष्टक – आदि अनादि अनंत अखण्ड (Shivashtak Adi Anadi Anant Akhand) का पाठ भोलेनाथ के प्रिय दिवस सोमवार को किया जाना उपयुक्त माना जाता है, किन्तु इसे अन्य दिवस में भी कर सकते है। हालाँकि, इसका जाप सुबह के समय (ब्रह्म मुहूर्त) या शाम के समय करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  2. स्थान:
    आप मंत्र (Shivashtak Adi Anadi Anant Akhand) का जाप किसी स्वच्छ और शांतिपूर्ण वातावरण में कर सकते हैं। बहुत से लोग किसी मंदिर, देवस्थान या अपने घर के किसी शांत कोने में शिव लिंग के सामने बैठना पसंद करते हैं, लेकिन मूर्ति के समक्ष बैठकर पाठ किया जाना सबसे उपर्युक्त है।
  3. आसन:
    आरामदायक और आरामदायक मुद्रा में बैठें, या तो फर्श पर या कुर्सी पर। अपनी पीठ सीधी रखें और अपने हाथों को अपनी गोद में इस प्रकार रखें कि आपकी हथेलियाँ ऊपर की ओर हों।
  4. एकाग्रता:
    पाठ करने से पहले, कुछ क्षण अपने आप को केंद्रित करने के लिए निकालें और अपने मन को अपने जप के उद्देश्य पर केंद्रित करें। आप भगवान शिव या उनके किसी विशिष्ट पहलू की कल्पना कर सकते हैं।
  5. समापन:
    अपना जाप पूरा करने के बाद, कुछ क्षण शांति से बैठें, कृतज्ञता व्यक्त करें और मंत्र से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करें।

श्री शिवाष्टक – आदि अनादि अनंत अखण्ड (Shivashtak – Adi Anadi Anant Akhand)

आदि अनादि अनंत अखंङ,
अभेद अखेद सुबेद बतावैं ।
अलख अगोचर रुप महेस कौ,
जोगि जती मुनि ध्यान न पावैं ॥
आगम निगम पुरान सबै,
इतिहास सदा जिनके गुन गावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥1

सृजन सुपालन लय लीला हित,
जो विधि हरि हर रुप बनावैं ।
एकहि आप विचित्र अनेक,
सुबेष बनाइ कैं लीला रचावैं ॥
सुंदर सृष्टि सुपालन करि,
जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥2॥

अगुन अनीह अनामय अज,
अविकार सहज निज रुप धरावैं ।
परम सुरम्य बसन आभूषण,
सजि मुनि मोहन रुप करावैं ॥
ललित ललाट बाल बिधु विलसै,
रतन हार उर पै लहरावैं ।
बङभागी नर-नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥3॥

अंग विभूति रमाय मसान की,
विषमय भुजगनि कौं लपटावैं ।
नर कपाल कर मुंङमाल गल,
भालु चरम सब अंग उढावैं ॥
घोर दिगंबर लोचन तीन,
भयानक देखि कैं सब थर्रावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥4॥

सुनतहि दीन की दीन पुकार,
दयानिधि आप उबारन धावैं ।
पहुँच तहाँ अबिलंब सुदारुन,
मृत्यु को मर्म विदारि भगावैं ॥
मुनि मृकंङु सुत की गाथा,
सुचि अजहुँ बिग्यजन गाइ सुनावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥5॥

चाउर चारि जो फूल धतूर के,
बेल के पात औ पानि चढावैं ।
गाल बजाय कै बोल जो,
‘हर हर महादेव’ धुनि जोर लगावैं ॥
तिनहिं महाफल देय सदासिव,
सहजहि भुक्ति मुक्ति सो पावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥6॥

बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य,
दारिद्रय नित्य सुख सांति मिलावैं ।
आसुतोष हर पाप ताप सब,
निरमल बुध्दि चित्त बकसावैं ॥
असरन सरन काटि भव बंधन,
भव निज भवन भव्य बुलवावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥7॥

औढरदानि उदार अपार जु,
नैकु सी सेवा तें ढुरि जावैं ।
दमन असांति समन सब संकट,
विरद बिचार जनहि अपनावैं ॥
ऐसे कृपालु कृपामय देब के,
क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं ।
बङभागी नर नारि सोई,
जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥8॥

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