Janmastami – Shri Krishna Jayanti (जन्माष्टमी)

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) एक हिंदू त्योहार है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू पंचांग के भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आम तौर पर अगस्त या सितंबर में ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार आता है।

जन्माष्टमी कैसे मनाया जाता है?

  1. उपवास: जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) पर कई भक्त दिनभर के उपवास करते हैं, जिसमें वे आम तौर पर आधी रात तक भोजन और पानी का त्याग करते हैं, क्योंकि इस वक्त भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
  2. भजन और कीर्तन: पूरे दिन और रात भक्तजन मंदिरों या घरों में एकत्र होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और दिव्य गुणों के भजन गाते हैं और कीर्तन करते हैं।
  3. पूजा और रस्में: मंदिरों और घरों में विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा की मूर्तियों को पंचामृत से स्नान करके (दूध, दही, मक्खन, शहद, घी और चीनी का मिश्रण) सजाया जाता है और नए कपड़े और आभूषण से सजाया जाता है।
  4. नैया खोलना: कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर महाराष्ट्र में, “धाही हांडी” नामक एक लोकप्रिय परंपरा होती है। इसमें भक्तजन धाही या मक्खन से भरे हुए मिट्टी के पात्र को टांगे पर लटकाकर उसे तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं। यह गतिविधि भगवान श्रीकृष्ण के खिलौनेपन और नाटकीय स्वभाव को प्रतिनिधित्ता करती है।
  5. झांकियां: मंदिरों और प्रदर्शनी में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के दृश्यों को दिखाती हुई सुंदर झांकियां प्रदर्शित की जाती हैं, खासकर उनके बचपन के दिनों से।
  6. रासलीला: कुछ क्षेत्रों में, “रासलीला” नामक परंपरागत नृत्य-नाटकों का आयोजन होता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के दिनों में गोपियों के साथ खिलवाड़ की कहानियों को प्रस्तुत किया जाता है।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti) न केवल धार्मिक त्योहार है बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक अवसर भी है जो लोगों के बीच एकता और खुशियों को प्रोत्साहित करता है। इस उत्सव में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को विभिन्न रंगीन और जीवंत तरीकों से व्यक्त किया जाता है।

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जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) को मनाने के पीछे कुछ मुख्य कारण

  1. भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी: जन्माष्टमी का प्रमुख उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी और प्रसन्नता का उत्सव करना है। भगवान कृष्ण को पूजन और भक्ति के साथ स्मरण करने से भक्तों को आनंद और शांति की अनुभूति होती है।
  2. धार्मिक महत्व: भगवान श्रीकृष्ण हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दैवीय व्यक्ति माने जाते हैं। उनके भगवद् गीता में कहे गए उपदेश और लीलाएं लोगों के जीवन में उदाहरणीय और मार्गदर्शक हैं। जन्माष्टमी इस महान व्यक्तित्व को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है।
  3. सामाजिक एकता और उत्साह: जन्माष्टमी एक ऐसा त्योहार है जो लोगों को एकजुट होने, भगवान के भजन और कीर्तन करके और साथ ही धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है। इससे समाज में आपसी सम्मान, प्रेम, और सदभावना का संदेश मिलता है।
  4. संस्कृति और रीति-रिवाज: जन्माष्टमी को हिंदू संस्कृति का अहम भाग माना जाता है। इसे रंग-बिरंगे रंगों, झांकियों, और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ मनाने का परंपरागत अंदाज रहा है, जिससे लोगों को अपने धरोहर और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस होता है।

इन सभी कारणों से, जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) को लोग धार्मिक उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं और इस अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित करते हैं।

श्रीकृष्ण जन्म की कुछ महत्वपूर्ण कथाएं

  1. दामोदर लीला: श्रीकृष्ण के जन्म की घटना के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म वृंदावन में हुआ था। उनके माता-पिता वषुदेव और देवकी को कंस नामक राजा ने उनके पहले श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास किया था। कंस ने उन्हें बंदी बनाकर उनके सारे बच्चों को मार दिया था, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के पैर को तोड़कर दो घर के बीच की ओर झूला दिया था। इस लीला को “दामोदर लीला” कहते हैं।
  2. नंद गृह आगमन: श्रीकृष्ण के जन्म के बाद, उन्हें वषुदेव ने मथुरा के राजा नंद के घर ले जाकर छुपाया। नंद के घर में श्रीकृष्ण का बचपन बीता और वो नंद बाबा के प्यारे नंदलाल बन गए।
  3. विश्वरूप दर्शन: श्रीकृष्ण बचपन में अपनी भक्तों को अपने विश्वरूप में प्रकट करते थे। एक बार, उन्होंने अपने मुखरविंद को खोलकर भक्त अर्जुन को अपने विश्वरूप का दर्शन कराया था, जो भगवद् गीता में उल्लिखित है।
  4. माखन चोरी: श्रीकृष्ण के बचपन की एक दिव्य लीला में, उन्होंने गोपियों के साथ माखन चोरी की। वो मक्खन चोरी करके और खुशियों के साथ भागते रहते थे, जिससे उन्हें कान्हा और माखनचोर के नाम से भी पुकारा जाता है।
  5. गोपी वास: श्रीकृष्ण ने वृंदावन में अपनी लीला के दौरान गोपियों के साथ मधुर रास लीला की। वो गोपियों के साथ नृत्य करके और बाँसुरी बजाकर सभी को आनंदित करते थे।

श्रीकृष्ण के जन्म की ये चुनिंदा कथाएं उनकी बाल लीला का एक छोटा सा हिस्सा हैं, जो उनके दिव्य और लीलामय जीवन का एक सुंदर अंश प्रस्तुत करते हैं। जन्माष्टमी के त्योहार पर भगवान श्रीकृष्ण की इन लीलाओं को याद करके भक्त उन्हें भक्ति और श्रद्धा से याद करते हैं और उनके दिव्य जीवन को मानवता के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनाते हैं।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) के त्योहार के दौरान श्रीकृष्ण के जीवन की कथाएं भक्तों के द्वारा पाठ, भजन, कीर्तन, और नाटकों के माध्यम से दिखाई जाती हैं। यह त्योहार भक्तों को संगीत, नृत्य, और धार्मिक कार्यक्रमों का आनंद उठाने का अवसर प्रदान करता है।

विभिन्न भाग्यशाली घरों और मंदिरों में, श्रीकृष्ण के बचपन की कई रंगीन लीलाएं प्रस्तुत की जाती हैं। भक्तजन उनके जीवन के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को देखते हैं और अपने मन को उन्हें याद करने में खो देते हैं।

सभी मंदिरों में श्रीकृष्ण की प्रतिमा को नववस्त्र और आभूषण से सजाया जाता है। भक्तजन प्रतिमा को दूध, मक्खन, मिष्ठान, और फलों से भोग चढ़ाते हैं और उन्हें अर्चना और आरती करके उनके जन्म का उत्सव करते हैं।

जन्माष्टमी की रात, भक्तजन रात्रि भजनों और कीर्तनों के बीच आध्यात्मिक भावनाओं में खो जाते हैं और भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करते हैं।

धार्मिक परंपराओं में जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) को बच्चों के बचपन का एक खास त्योहार भी माना जाता है। घरों में बच्चों को खुश रखने के लिए विशेष रूप से बाल श्रीकृष्ण के छोटे मुराली, मक्खन मिश्रित मिश्री, और पूर्णिमा की पिंडी दिए जाते हैं। बच्चे भी इस त्योहार का आनंद लेते हैं और श्रीकृष्ण की कहानियों को सुनकर मोहित होते हैं।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) का त्योहार हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और यह धार्मिक अवसर समाज में समरसता, प्रेम, और भक्ति की भावना को बढ़ावा देता है। श्रीकृष्ण के जीवन की कथाएं और उनकी लीलाएं हमें सांस्कृतिक और धार्मिक उपलब्धियों के प्रति समर्पित करती हैं और हमें एक अधिक उदार और निष्ठावान व्यक्ति बनाती हैं।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) के त्योहार को मनाने से हमें भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनके दिव्य उपदेशों का स्मरण करने का अवसर मिलता है। उनकी लीलाएं हमें विवेक, न्याय, समरसता, और धर्म के महत्व को समझाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में दोस्ती, प्रेम, और प्रीति के उदाहरण हमें अपने जीवन में नेकी, सजगता, और समरसता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) का यह धार्मिक उत्सव हमें समाज के भीतर एकता और सामर्थ्य का संदेश देता है। इस दिन समाज में अलग-अलग जाति, धर्म, और भाषा के लोग एकसाथ मिलकर भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और उनकी भक्ति में लीन होते हैं। यह एक संगीतमय और रंगीन त्योहार है जो समाज में प्रेम और सदभावना का संदेश बनाता है।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) के दिन भक्तजन रात्रि को जागते हैं और भजन, कीर्तन, और धार्मिक गानों के माध्यम से श्रीकृष्ण की महिमा गाते हैं। भक्तिभाव से उनकी पूजा करते हैं और विशेष प्रसाद वितरित करते हैं।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) के दौरान आयोजित जागरणों, समाज सेवा, और धार्मिक सम्मेलनों में भक्तजन भगवान कृष्ण के जीवन और उपदेशों के बारे में बातचीत करते हैं और एक-दूसरे के साथ एकात्मता बनाते हैं। इससे लोग अपने आस-पास के समाज के साथ मेल-जोल करते हैं और एकदृष्टि से धर्म, प्रेम, और भाईचारे की महत्वपूर्णता को समझते हैं।

जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) का त्योहार एक खुशनुमा और भक्तिभावपूर्ण अवसर है जिसमें लोग भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। इसे मनाकर हम भगवान के प्रेम और शांति का अनुभव करते हैं और एक साथ समाज में समरसता और बन्धुत्व का संदेश देते हैं।

प्रसिध जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti) मेला

  1. मथुरा, उत्तर प्रदेश: मथुरा, भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। जन्माष्टमी के अवसर पर यहां विशेष रूप से मथुरा के द्वारिकाधीश मंदिर और बांके बिहारी मंदिर में महाभिषेक पूजा और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है।
  2. वृंदावन, उत्तर प्रदेश: वृंदावन, भगवान कृष्ण के बचपन का स्थान है। जन्माष्टमी के अवसर पर यहां श्रीबनके बिहारी मंदिर, रांगीला गोकुल मंदिर, और प्रेम मंदिर में भजन संध्या, कीर्तन, और रासलीला का आयोजन होता है।
  3. गोकुल, उत्तर प्रदेश: गोकुल भी भगवान कृष्ण के बचपन के स्थानों में से एक है। यहां जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान के प्रतिमा का विशेष देखभाल किया जाता है और विशाल जागरणों और रासलीला आयोजित किये जाते हैं।
  4. द्वारका, गुजरात: द्वारका, भगवान कृष्ण के राजधानी के रूप में जाना जाता है। जन्माष्टमी पर यहां रंगबीरंगे मेले का आयोजन होता है, जिसमें भजन-कीर्तन, मुकुट पूजा, और शोभा यात्रा शामिल होती है।
  5. आहमदाबाद, गुजरात: यहां भी जन्माष्टमी (Janmastami – Shri Krishna Jayanti ) के अवसर पर विभिन्न स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता है। भक्तजन रंगबिरंगे वस्त्रों में सजे हुए भगवान के मूर्तियों का दर्शन करते हैं और भजन-कीर्तन का आनंद लेते हैं।

यहां दी गई जानकारी से स्पष्ट होता है कि जन्माष्टमी के अवसर पर भारत भर में लोग उत्साह से मेले आयोजित करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में सांस्कृतिक और धार्मिक उपलब्धियों का आनंद उठाते हैं।

भगवान श्री कृष्ण (Krishna) के रोचक तथ्य

  1. जन्मतिथि: भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में भद्रपद मास की अष्टमी तिथि को हुआ था। यह तिथि हर साल जन्माष्टमी के रूप में मनाई जाती है।
  2. माखन चोरी: बाल रूप में, भगवान श्रीकृष्ण ने मखान, दही, और मिष्ठानाइयों की चोरी किया करते थे। इसलिए उन्हें “माखनचोर” भी कहा जाता है।
  3. युद्ध में मेंढक: महाभारत के युद्ध में, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसके दौरान, भगवान ने अपनी जीभ निकालकर दिखाई थी और उसे उलटी रखकर कहा था कि दुनिया के लोग तुम्हें मेंढक के बोलने वाली जीभ के रूप में देखेंगे।
  4. रासलीला: भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन के गोपियों के साथ रासलीला का आयोजन किया था। रासलीला में उन्होंने गोपियों के साथ नृत्य किया और अनंत मोहिनी रूप में वे अपनी अनंत लीला दिखाते थे।
  5. कालिंग नर्नारायण: एक बार, भगवान श्रीकृष्ण ने कालिंग नामक एक राक्षस को वध किया था, जो गोकुल के लोगों को परेशान कर रहा था। इस घटना के बाद उन्हें “कालिंग नरनारायण” के रूप में जाना जाता है।
  6. सुदर्शन चक्र: भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र एक अद्भुत शस्त्र था जो उनके धर्मरक्षक रूप को दर्शाता था। यह चक्र भगवान के अध्यक्षता में दुर्योधन जैसे दुष्ट राक्षसों का समानाया देता था।
  7. संजय का दूरदर्शन: महाभारत युद्ध में व्यासजी ने अपने शिष्य संजय को वरदान दिया था कि उन्हें भगवान कृष्ण की कृपा से दूरबीन दिखाई देगी जिससे वह महाभारत के युद्ध की घटनाओं को देख सकता है। संजय को यह दूरदर्शन श्रीकृष्ण की कृपा से मिला था।
  8. गीता सार: भगवद् गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म और कर्म के विषय में उपदेश दिया था। इससे गीता सार भी कहा जाता है और यह धार्मिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।

भगवान श्रीकृष्ण के इन रोचक तथ्यों ने उनके व्यक्तित्व और जीवन की अद्भुतता को प्रकट किया है, जिससे उन्हें भारतीय संस्कृति में एक अद्भुत स्थान मिलता है।

भगवान कृष्ण (Krishna) के संबंधित कुछ प्रश्न

  1. प्रियतम श्रीकृष्ण, आपके जन्म भूमि कौनसी है? जवाब: मैं वृंदावन में जन्म लिया था।
  2. श्रीकृष्ण, आपके माता-पिता कौन थे? जवाब: मेरी माता यशोदा और पिता वसुदेव थे।
  3. भगवान श्रीकृष्ण, आपके बचपन की एक रोचक लीला कौन सी थी? जवाब: मेरी रासलीला बचपन की सबसे रोचक और मनोहर लीलाओं में से एक थी, जिसमें मैं वृंदावन के गोपियों के साथ खेलता और नृत्य करता था।
  4. प्रिय श्रीकृष्ण, आपका मित्र और साथी कौन था? जवाब: मेरा सबसे निकटी साथी और मित्र अर्जुन था। हम साथ में महाभारत के युद्ध में भी एक-दूसरे का सहारा बने रहे।
  5. श्रीकृष्ण, आपका प्रिय भजन और संगीत कौन सा था? जवाब: मैं और मेरी भक्तजन आपस में भजन, कीर्तन, और धार्मिक संगीत का आनंद लिया करते थे। मेरे प्रिय भजनों में “हरे रामा हरे कृष्णा” और “वैष्णव जन तो” शामिल हैं।
  6. प्रिय श्रीकृष्ण, आपकी गीता सार क्या है? जवाब: भगवद् गीता में मैंने अर्जुन को धर्म और कर्म के विषय में उपदेश दिया था, जिससे वह सही रास्ते पर चल सके और अपने कर्तव्यों का पालन कर सके।
  7. प्रिय भगवान, आपका परम प्रेमी कौन था? जवाब: मेरा परम प्रेमी और पत्नी राधा थी, जिनसे मैंने वृंदावन में अनेक रसिक और रोमांचक लीलाएं रची।

भगवान श्रीकृष्ण के इन सवालों के जवाब से उनकी भक्ति और जीवन के अनमोल संदेशों का अनुभव होता है। उनके जीवन और उपदेश हमें नेकी, सजगता, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण (Krishna) के अवतार के बारे में जानकारी

भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु पुराण और भागवत पुराण में भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में वर्णित किया गया है। भगवान विष्णु जी के दस अवतारों में श्रीकृष्ण जी भगवान के सबसे प्रिय अवतार माने जाते हैं।

  1. अवतार के लक्षण: भगवान श्रीकृष्ण अपने अवतार में अलौकिक सुंदरता और आकर्षक व्यक्तित्व के धारक थे। उनकी कृष्णा लीलाएं और बाल लीलाएं लोगों के दिलों में विशेष प्यार पैदा करती हैं।
  2. जन्म: भगवान श्रीकृष्ण का जन्म वृंदावन के गोकुल नामक स्थान पर हुआ था। उनका जन्म भद्रपद मास की अष्टमी तिथि को हुआ था, जिसे हम जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं।
  3. बाल लीला: भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल अवस्था में अपनी रासलीला और माखन चोरी के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने वृंदावन के सभी गोपियों के साथ मधुर रास रचाई और उनके साथ बचपन का सुख उड़ाया।
  4. युद्ध और भगवत गीता: भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को उपदेश दिया था, जिसे गीता के रूप में जाना जाता है। उनके द्वारा दिए गए उपदेश ने अर्जुन को धर्म के पथ पर सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया था।
  5. मोक्ष प्राप्ति: भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उपदेश हमें मोक्ष की प्राप्ति के लिए सही रास्ते की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। उनके उपदेश और भक्ति भावना से हम भगवान के साथ एकता और आनंद का अनुभव कर सकते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की कहानी और उनके दिव्य उपदेशों ने मानवता को नेतृत्व, समझदारी, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान किया है। उनके जीवन और उपदेशों को समझकर हम अपने जीवन को समृद्ध, शांतिपूर्ण, और धार्मिक बना सकते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन बहुत ही रोमांचक और अद्भुत है। उनके जीवन की कहानी भगवत पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत जैसी प्रमुख पुराणिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित की गई है।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म वृंदावन में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम वसुदेव और यशोदा था। उनके पालक माता-पिता नंद और यशोदा थे, जिन्होंने उन्हें अपने बच्चे की तरह पाला।

श्रीकृष्ण बचपन से ही अद्भुत बालक थे और उनके साथी, गोपियों, और यशोदा नंदन ने उन्हें माखन चोरी और रास लीला के लिए प्रसिद्ध किया।

श्रीकृष्ण का वृंदावन से मथुरा, और फिर द्वारका जाना, उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं में से कुछ थे। उन्होंने द्वारका में राजा सात्वत के राजमहल में वास किया।

महाभारत के युद्ध में, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया और उनके माधुर्य और ब्रह्मचर्य के रूप में अनगिनत लीलाएं रचाईं।

उनके जीवन के अंतिम दिनों में, श्रीकृष्ण ने वृंदावन के साथियों के साथ विदाई की लीला रचाई और फिर द्वारका वापस चले गए। द्वारका के विधवाओं को उन्होंने सहायता और आशीर्वाद दिया और उनके साथ भक्तजन बनकर उनका साथ दिया।

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन एक अद्भुत और दिव्य जीवन था, जो भक्तजनों के दिलों में सदैव बसा रहेगा। उनके उपदेश, कर्म, और प्रेम से भरे जीवन के उदाहरण से हम सब अपने जीवन को सफलता, संतुष्टि, और समृद्धि से भर सकते हैं।

आरती कुंजबिहारी की (Aarti Kunj Bihari Ki)

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥

आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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