तुलसी विवाह (Tulsi Vivah)

तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) 2023 : हिन्दुओं के द्वारा मनाये जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है, जिसमे भगवान् विष्णु के शालीग्राम रूप और माँ तुलसी का विवाह किया जाता है. यह विवाह प्रतिवर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के एकादशी में किया जाता है। तुलसी विवाह जिसे देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) भी कहा जाता है, इस वर्ष एकादशी तिथि का प्रारम्भ 22 नवम्बर 2023 को दोपहर 01 बजकर 33 मिनट पर होगा और इसका समापन 23 नवम्बर को सुबह 11 बजकर 31 मिनट पर होगा। जिस कारण से एकादशी व्रत 23 नवम्बर को मनाया जाएगा। 24 नवंबर को सुबह 6 बजे से 8 बजकर 13 मिनट तक करना शुभ होगा।

तुलसी विवाह क्यों मानते है (Tulsi Vivah Kyo Manate hai)

दिवाली पर्व के 10 दिनों के बाद ग्यारवें दिन देवउठनी ग्यारस या देवउठनी एकादशी का उपवास रखा जाता है, इस दिन भगवान् विष्णु अपने निद्रा से जागते है, फिर इनका सालिग्राम स्वरुप का विवाह माँ तुलसी के साथ किया जाता है इस दिन से ही समस्त मांगलिक कार्य का आरंभ हो जाता है.

तुलसी विवाह पूजा विधि (Tulsi Vivah Pooja Vidhi)

सामग्री:

  1. तुलसी पौधा
  2. भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र या सालिग्राम स्वरुप
  3. पूजा के पदार्थ (धूप, दीप, फूल, फल, मिठाई आदि)
  4. हल्दी, कुंकुम, चंदन का पेस्ट और अन्य धार्मिक वस्त्रादि
  5. पूजा की थाली या प्लेट
  6. पवित्र जल (कलश के लिए)
  7. पान के पत्ते, सुपारी, नारियल

पूजा विधि:

  1. तैयारी:
    • जहाँ पूजा की जाएगी, वहाँ को साफ सुथरा करें।
    • तुलसी पौधा मंच पर रखें।
    • तुलसी पौधे के पास भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र या सालिग्राम स्वरुप रखें।
    • थाली या प्लेट पर अन्य पूजा के वस्त्रादि रखें।
    • तुलसी माता के लिए श्रृंगार का सामान (चुन्नी, साड़ी, टिकली, आलता और पुष्प आदि) रखें।
  2. कलश स्थापना:
    • कलश स्थापना शुरू करें, जल से भरे बर्तन को हल्दी, कुंकुम और फूलों से सजाएं। तुलसी पौधे के पास रखें।
  3. आरती और प्रार्थना:
    • दीप और धूप जलाकर पूजा शुरू करें।
    • भगवान विष्णु और माँ तुलसी से प्रार्थना करें और उनका आशीर्वाद मांगें।
    • भगवान विष्णु और माँ तुलसी मंत्र, आरती या स्तुति का जाप करें।
  4. तुलसी विवाह रीति-रिवाज:
    • तुलसी पौधा और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र या सालिग्राम स्वरुप के बीच विवाह सम्पन्न करें।
    • तुलसी पौधे पर चंदन, कुंकुम और हल्दी लगाकर श्रृंगार करे।
    • फूल, फल, मिठाई और अन्य पूजा के पदार्थों की अर्पण करें।
  5. तुलसी विवाह कथा:
    • तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) की कथा सुनें या सुनाएं।
  6. आरती और प्रसाद वितरण:
    • पूजा को आरती से समाप्त करें।
    • प्रसाद को परिवार के सदस्यों या भक्तों में बांटें।
  7. भोज:
    • कुछ परिवार भोज या विशेष भोजन का आयोजन करते हैं।

ऊपर दिए गए पूजा विधि क्षेत्रीय परंपराओं और परिवार की विशेष रीति-रिवाजों के आधार में अंतर हो सकता है। यह अनुशासन के साथ पूजा करने के लिए ज्ञानी या पुरोहित से परामर्श करना उपयुक्त होगा।

तुलसी विवाह कथा (Tulsi Vivah Katha)

आइये जानते है भगवान् विष्णु और माता तुलसी के विवाह की कथा :

जालंधर का जन्म :

एक बार जब भगवान् शंकर, शिव तांडव कर रहे थे, तांडव से निकले तेज को उन्होंने समुद्र में फेंक दिया, जिससे एक बालक का जन्म हुआ, जो बड़ा होकर अत्यंत क्रूर व निर्दयी राक्षस राजा बना, जिसे जालंधर के नाम से जाना गया।

जालंधर और वृंदा का विवाह :

कालनेमि राक्षस की पुत्री का नाम वृंदा था, जो की अत्यंत सुन्दर, सुशील व संस्कारी थी, वृंदा को राजकुमारी होने का जरा भी घमंड नहीं था जिस कारण से वह प्रतिदिन दिन दुखियों की सहायता करती थी और राक्षस कुल के होने के बाद भी वृंदा पूजा पाठ में अपना अधिक समय व्यतीत करती थी. कुछ वर्षो बाद कालनेमि राक्षस ने वृंदा का विवाह राक्षस राजा जालंधर से कर दिया। वृंदा पतिव्रता स्त्री थी, वह सदैव अपने पति की सेवा किया करती थी।

जालंधर का घमंड :

समय बीतता गया राक्षस राजा जालंधर अपने शक्ति के मद में चूर होकर बहुत सारे देवताओं पर विजय पा ली थी, फिर एक दिन वह माँ लक्ष्मी को पाने की कोशिस करने लगा, किन्तु माँ लक्ष्मी उसे समुद्र से निकले हो कहकर उसे अपना भाई बना लिया, निराश होकर वह माँ पार्वती की खोज में कैलाश पर्वत की ओर चल पड़ा, जालंधर भगवान् शंकर के वेश में माँ पार्वती के पास पहुंचे, लेकिन माँ पार्वती ने अपनी योग शक्ति से तुरंत उसकी असली पहचान का खुलासा कर दिया, जिससे वह वहाँ से गायब हो गईं। जालंधर माँ पार्वती को पाने के लिए भगवान् शंकर से युद्ध कर रहा था किन्तु जालंधर युद्ध में पराजित नहीं हो रहा था. अत्यंत क्रोधित होकर माँ पार्वती ने जालंधर द्वारा किये गए पूरी घटना भगवान विष्णु को बताई। जालंधर की समर्पित पत्नी वृंदा को अपने वैवाहिक कर्तव्यों के प्रति अटूट विश्वास था, जिसने जालंधर को मृत्यु या हार से बचाया। जलंधर को जीतने के लिए वृंदा का पतित्व तोड़ना जरूरी था।

भगवान् विष्णु का ऋषि का रूप धारण करना :

माँ पार्वती की बातें सुनकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि का रूप धारण किया और उस जंगल में गए जहा वृंदा टहल रही थी। दो मायावी राक्षस वृंदा के सामने आ गए, जो की भगवान विष्णु के द्वारा ही वृंदा के समक्ष भेजे गए थे, वृंदा राक्षसों से बचने के मदद के लिए आवाज लगाने लगी, तत्पश्चात ऋषि का वेश धारण किये भगवान् विष्णु ने दोनों मायावी राक्षसों को एक साथ वृंदा की आंखों के सामने एक पल में भस्म कर दिया। ऋषि के शक्ति के इस प्रदर्शन को देखकर, वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति के बारे में पूछा। इस पर ऋषि ने अपनी माया से दो वानर प्रकट किये: जिसमे से एक ने जालंधर का कटा हुआ सिर पकड़ रखा था और दूसरे ने उसका धड़ पकड़ रखा था। यह देखकर वृंदा बेहोश होकर धरती पर गिर पड़ी। वृंदा के जागने पर, उसने ऋषि से अपने पति के जीवन को वापस करने की मांग करने लगी।

भगवान् विष्णु का जालंधर रूप धारण करना :

ऋषि ने अपनी माया से जालंधर का सिर तो उसके धड़ से जोड़ दिया लेकिन छुपकर जालंधर के शरीर में प्रवेश कर गए। धोखे से बेखबर वृंदा ने जालंधर रूप धारण किये भगवान् विष्णु के प्रति अपना पवित्र पतिव्रता को फिर से शुरू कर दिया, जिससे अनजाने में उसकी पतित्व निष्ठा टूट गई। इसके बाद, उनके पति जलंधर के खिलाफ युद्ध में हार गए।

भगवान् विष्णु का शालिग्राम पत्थर में परिवर्तित होना :

भगवान् विष्णु की इस दिव्य लीला के बारे में जानकर क्रोधित होकर वृंदा ने भगवान विष्णु को हृदयहीन पत्थर में बनने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को स्वीकार करते हुए भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर में परिवर्तित हो गये। भगवान विष्णु के इस परिवर्तन से सभी लोक का संतुलन बिगड़ गया। यह देखकर सभी देवताओं ने वृंदा से भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की।

Saligram Stone
Saligram Stone

देव-उठावनी एकादशी को तुलसी विवाह :

वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप से मुक्त कर दिया और फिर अपने पति के कटे हुए सिर के साथ सती हो गई। जहां पर वृंदा की सती की राख बिखरी थी, वहां पर पवित्र तुलसी का पौधा उग आया। वृंदा का अपने पति के प्रति अटूट प्रेम को देखकर भगवान विष्णु ने वृंदा को आशीर्वाद दिया कि उसकी पवित्रता के कारण, वह उसे लक्ष्मी के समान समझेंगे और उन्होंने वादा किया कि वह तुलसी के रूप में हमेशा उनके साथ रहेंगी। तभी से कार्तिक मास की देव-उठावनी एकादशी को तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) के रूप में मनाया जाता है, इस विवाह में भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के साथ तुलसी का विवाह कराने से लोक और परलोक में अपार यश की प्राप्ति होती है।


तुलसी विवाह हेतु आरती (Tulsi Vivah Aarti)


तुलसी विवाह के लाभ (Tulsi Vivah ke Benefit)

तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) या देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस विवाह का महत्व विभिन्न प्रकार से माना जाता है, और इसके कई लाभ हैं।

तुलसी विवाह के लाभ:

  1. धार्मिक महत्व: तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) को हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पत्नी तुलसी के विवाह का स्मरण करने के रूप में माना जाता है। यह व्रत और पूजा का महत्वपूर्ण दिन है जो भक्तों को आध्यात्मिक और धार्मिक लाभ प्रदान करता है।
  2. घर में शुभता: तुलसी की पूजा से घर में शुभता और सकारात्मक ऊर्जा आती है। यह विवाह घर में सौभाग्य, समृद्धि, और खुशहाली लाता है।
  3. आरोग्य और सुख: तुलसी के पौधे का प्रतिदिन पूजन और सेवन से स्वास्थ्य के लिए लाभ प्राप्त होता है। इसका सेवन रोगों को दूर करने में मदद करता है और सुख-शांति बनाए रखता है।
  4. कर्म की सफलता: तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का पालन करने से कर्मों में सफलता मिलती है। यह साधना और त्याग की भावना को बढ़ावा देता है।

तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) का अनुसरण करने से व्यक्ति आध्यात्मिक, शारीरिक, और मानसिक तौर पर संतुष्टि प्राप्त कर सकता है। यह उसके जीवन में सौभाग्य और समृद्धि लाने में मदद कर सकता है।

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